Saturday, April 4, 2009

zafar iqbal ki shayyiri

नहीं कि मिलाने मिलाने का सिलसिला रखना
किसी भी सतह पे कोइ तो राबता रखना
मरेंगे लोग हमारे सिवा भी तुम पे बोहत
यह जुर्म है तो फीर इस जुर्म की सज़ा रखना
मदद की तुम से तवक्को तो खैर क्या होगी
गरीब-यें-शहर-यें-सितम हूँ मेरा पता रखना
bas एक शाम हमें चाहिए ण पूछना क्यूं
यह बात और किसी शाम पे उठा रखना
नए सफ़र पे रवाना हुआ हूँ अज-सर-यें-नोऊ
जब आऊँगा तो मेरा नाम भी नया रखना
फसील-यें-शौक उठाना जफर ज़रूर मगर
किसी तरफ से निकालने का रास्ता रखना

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