Monday, June 1, 2009

muneer ki shayyiri

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक्श को धोया नहीं
तुने मुझको खो दिया, मैंने तुझे खोया नहीं
नींद का हल्का गुलाबी सा खुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब् को देर तक सोया नहीं
हर तरफ़ दीवार-ओ-दर और उन् में आँखों के हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लब-ए-गोया नहीं
जनता हूँ एक ऐसे शख्स को में भी ‘मुनीर’
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं

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