Sunday, December 21, 2008

akbar ki shayyiri

सौ जान से महव-ए-रुख-ए-जाना[प्रेमिका को देखना] हैं तो हम हैं
इस आइना खाना[शीशा घर] में जो हैरांहैं तो हम हैं
गुल्गिश्त करें, फूल चुनें उनको है कया गम
आवारा-ए-सहरा-ए-मुगीलां[जंगल में भटकना] हैं तो हम हैं
भड़की हुई है आतिश-ए-गुल अपने ही दम से
सोज़-ए-जिगर-ए-बुलबुल-ए-नालां[परेशां बुलबुल का दिल का दर्द]हैं तो हम हैं
शोर अपने ही जलवे का है यें दैर-ओ-हरम[मंदिर-मसजिद] में
मक़सूद-ए-दिल-ए-गबरू-ओ-मुसलमां[पूजा-इबादत करने वाले]हैं तो हम हैं
ऐ बर्क़[बिजली] तड़पने में हम हैं तेरे साथी
ऐ अब्र[बादल] तेरे साथ जो गिरयां[रोता हुआ] है तो हम हैं
दिन रात रकीबों पे है साहिब कि इनायत
बस एक गम-ए-हिज्र में नालां[परेशान] हैं तो हम हैं

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