Sunday, December 21, 2008

bashir badr ki shayyiri

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इसके बाद सहर ना हो
वो बड़ा रहीमो-करीं है मुझे यें सिफत भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर ना हो
मेरे बाजूओं में थकी थकी अभी महवेख्वाब[सपने में खोई] है
चांदनी ना उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गज़र ना हो
कभी दिन की धुप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र ना हो

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