Monday, December 22, 2008

javed akhtar ki shayyiri

हमारे शौंक की ये इन्तहा थी
क़दम रखा कि ... मंजिल रास्ता थी

बिछड़ के डार से ... वन-वन[जंगल] फिरा वो

हिरन को अपनी कस्तूरी[musk-deer] कज़ा थी

कभी जो ख्वाब था ... वो पा लिया है !

मगर जो खो गयी ... वो चीज़ कया थी ???

मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था

मेरे अंजाम की वो इबतीदा थी

मुहबत मर गयी ... मुझको भी ग़म है

अच्छे दिनों की आशना[दोस्त] थी
जिसे छू लूं मैं ... वो वो जाये सोना
तुझे देखा .. तो ... जाना बददुआ थी

मरीज़-ए-ख्वाब को तो ... अब सफा[आराम] है

मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी

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