Tuesday, March 31, 2009

abdul ahad saaz ki shayyiri

खुद को क्यूँ जिस्म का ज़िन्दानी करें
फिक्र को तख़्त-ए-सुलेमानी करें
देर तक बैठ के सोचें खुद को
आज फिर घर में बियाबानी करें
अपने कमरे में सजाएं आफाक़
जलसा-ए-बे-सर-ओ-सामानी करें
उमर भर शेर कहें खून थूकें
मुन्तखिब रास्ता-ए-नुक्सानी करें
खुद के लिए मोल लें इजहार का कर्ज़
दूसरों के लिए आसानी करें
शेर के लब पे खामोशी लिखें
हर्फ़-ए-ना-गुफ्ता को ला-सानी करें
कीमियाकारी है फ़न अपना साज़
आग को बैठे हुए पानी करें

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