Monday, March 23, 2009

saahir ludhiyanwi ki shayyiri

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम
मायूसी-ए-माल-ए-मोहब्बत न पूछ
अपनों से पेश आये हैं बेगानगी से हम
लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
गो दब गए हैं बार-ए-गम-ए-ज़िंदगी से हम
ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तेफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम
अल्लाह रे फरेब-ए-मशिय्यत कि आज तक
दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे खामोशी के साथ

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