Thursday, April 30, 2009

amir minaai ki shayyiri

गुज़िश्ता ख़ाक-नशीनों की यादगार हूँ मैं
मिटा हुआ सा निशान-ए-सर-ए-मज़ार हूँ मैं
निगाह-ए-करम से मुझको न देख ए दोज़ख
खबर नहीं तुझे किस का गुनाहगार हूँ मैं
फिर उसकी शान-ए-करीमी के हौसले देखे
गुनाहगार यह कह दे, गुनाहगार हूँ मैं
बडे मज़े में गुज़रती है बेखुदी में अमीर
खुदा वोह दिन न दिखाए कि होशियार हूँ मैं

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