Thursday, April 30, 2009

unknown

वरक है मेरे सहीफे का आसमान क्या है
रहा ये चाँद तो शायद तुम्हारा चेहरा है
जो पूछता था मेरी उम्र उससे कह देना
किसी के प्यार के मौसम का एक झोंका है
फिजा की शाख पे लफ्जों के फूल खिलने दो
जिसे सुकूत समझते हो ज़र्द पत्ता है
मेरे क़दम भी कोई शाम काश ले लेती
मेरा सफर भी तो सूरज की तरह तनहा है
ज़रूर चाँद के होंटों पे मेरा नाम आया होगा
मेरी मिज़ह से सितारा सा कोई टूटा है
हर एक शख्स को उम्मीद अब उसी से है

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