Tuesday, April 28, 2009

unknown

मेरे चेहरे से इश्क का गुमाँ होता क्यूँ है
जब आग ही नहीं तो धुआं होता होता क्यूँ है ...
चटकता है कहीं जब आइना ए-दिल किसी का
हर बार मुझी पे ही सुब्हा होता क्यूँ है ...
दिल न लगाने की यूँ तो कसम उठा रखी है
उसकी यादो में फिर भी रतजगा होता क्यूँ है ...

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