Thursday, April 30, 2009

ghalib ki shayyiri

न गुल-ए-नग़्मा हूं न परदा-ए-साज़
मैं हूं अपनी शिकस्त की आवाज़
तू और आराईश-ए-ख़म-ए-काकुल
मैं और अंदेशए-हाए-दूर-दराज़
लाफ़-ए-तमकीं फ़रेब-ए-सादा-दिली
हम हैं और राज़हाए सीना-ए-गुदाज़
हूं गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
वरना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
नहीं दिल में मेरे वह क़तरा-ए-ख़ूं
जिस से मिश्गां हुई न हो गुलबाज़
मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
मैं ग़रीब और तू ग़रीबनवाज़
अस'अदुल्लाह ख़ां तमाम हुआ
ए दरेग़ा वह रिंद-ए-शाहिद-बाज़

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