Thursday, April 30, 2009

mirza mazhar jan-e-janaan ki shayyiri

न तू मिलने के अब क़ाबिल रहा है
न मुझको वो दिमाग़-ओ-दिल रहा है
यह दिल कब इश्क़ के क़ाबिल रहा है
कहाँ उसको दिमाग़-ओ-दिल रहा है
खुदा के वास्ते उसको ना टोको
यही एक शहर में क़ातिल रहा है

No comments:

Post a Comment

wel come