Monday, December 22, 2008

faiz ki shayyiri

दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए गम आते हैं
जैसे बिछडे हुए काबे में सनम आते हैं
इक-इक करके हुए जाते हैं तारे रोशन
मेरी मंजिल की तरफ तेरे कदम आते हैं
रस-ए-मय[शराब का दौर] तेज़ करो,साज़ की लय तेज़ करो
सु-ए-मयखाना[मयखाना की ओर] सफीरान-ए-हरम[धर्म के प्रतिनिधि] आते हैं
कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग
वो तो जब आते हैं, माइल-ब-करम[कृपालु] आते हैं
और कुछ देर न गुज़रे, शब्-ए-फुर्क़त से कहो
दिल भी कम दुखता है, वो याद भी कम आते हैं

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