Tuesday, March 31, 2009

buniyad hussain ''zaheen'' bikaneri ki shayyiri

लोग ये कहते थे इक लम्बा सफ़र है ज़िन्दगी
मौत को देखा तो समझे मुख्तसर है ज़िन्दगी

खून से लिथड़ी हुई लाशें हैं देखो हर तरफ़
ज़ुल्म के इस दौर में फिर दांव पर है ज़िन्दगी

हिम्मतो - जुरअत ही से मिलता है मंजिल का सुराग़
हौसला जीने का हो तो राहबर है ज़िन्दगी

तेरे हर इक गाम पर हैं ठोकरें ही ठोकरें
क्या तुझे एहसास है; तुझको ख़बर है ज़िन्दगी

भूक; लाचारी; मुसीबत; मुफ़लिसी है मुल्क में
आज हम आज़ाद हैं और दर - ब - दर है ज़िन्दगी

क्या सुनाउं मैं तुम्हें टूटे दिलों की दास्ताँ
मुख्तलिफ़ राहों में इक तन्हा सफ़र है ज़िन्दगी

हाय ! किन आँखों से देखें हम ये मंज़र ऐ ''ज़हीन''
टूटती साँसें हैं और बे - बालो - पर है ज़िन्दगी

असरे - क़लम
buniyad hussain ''ज़हीन'' bikaneri

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