Wednesday, March 18, 2009

ghalib ki shayyiri

कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझसे
जफ़ाएँ करके अपनी याद, शर्मा जाये है मुझसे
खुदाया ! जज्बा-ए-दील की मगर तासीर उलटी है
की जितना खींचता हूँ और खिचता जाये है मुझसे
वो बद्खू[bad habbit] और मेरी दास्ताँ-ए-इश्क तुलानी[long]
इबारत मुख्तसर[consice] कासीद भी घबरा जाये है मुझसे
उधर वो बदगुमानी[suspicion] है,इधर यह नातवानी[weakness] है
ना पुछा जाये है उस से, ना बोला जाये है मुझसे
संभलने दे मुझे ऐ ! ना-उमीदी कया काय्मत है !
की दामन-ए-ख्याल-ए-यार छूटा जाये है मुझसे
तकलुफ़ बरतरफ़[suspend] नज्ज़ारगी में भी सही, लेकिन
वो देखा जाये कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे
हुए है पाँव ही पहले नाबर्द-ए-इश्क[struggle of love] में ज़ख्मी
ना भागा जाये है मुझसे, ना ठहरा जाये है मुझसे
काय्मत है की होवे मुदई का हम सफ़र "गालिब"
वो काफिर, जो खुदा को भी ना सौंपा जाये है मुझसे

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