Monday, March 23, 2009

nizam rampuri ki shayyiri

अंगडाई भी वोह लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझको, छोड़ दिए मुस्करा के हाथ
बे-साखता निगाहें जो आपस में मिल गयीं
क्या मुँह पे उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ
क़ासिद तेरे बयां से दिल ऐसा ठहर गया
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आ के हाथ
कूचे से तेरे उठें तो फिर जाएँ हम कहाँ
बैठे हैं यां तो दोनों जहाँ से उठा के हाथ
देना वोह उसका सागर-ए-मै याद है निज़ाम
मुँह फेर कर उधर को, इधर को बढ़ा के हाथ

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