Saturday, April 4, 2009

khaar dehlvi ki shayyiri

उसी की दास्तानें हैं, उसी की किस्सा-ख्वानी है
वो लुत्फ़-ए-खास जो मुझ पर तेरा ए यार जानी है
न जा, जालिम अभी तो तिश्ना-ए-दीदार हैं आँखें
ज़रा दम ले अभी तो दास्तान-ए-गम सुनानी है
मोहब्बत जुल्फ का आसेब, जादू है निगाहों का
मोहब्बत फितना-ए-महशर, बला-ए-नागाहानी है
बुझी हसरत का नौहा है, दिल-ए-मरहूम का मातम
ब-अल्फाज़-ए-दगर ये शेर-ख्वानी सोज़-ख्वानी है
घराना है हमारा दाग का हम दिल्ली वाले हैं
ज़माने में मुसल्लम खार अपनी खुश-बयानी है

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