Thursday, April 30, 2009

khalid mahmood ki shayyiri

पुरखों की तह्ज़ीब से महका बस्ता पीछे छूट गया
जाने किस वहशत में घर का रस्ता पीछे छूट गया
बच्चे मेरी उंगली थामे थामे पीछे पीछे चलते थे
फिर वह आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
अहद-ए-जवानी रो रो काटा, मीर मियां सा हाल हुआ
लेकिन उनके आगे अपना क़िस्सा पीछे छूट गया
पीछे मुड़ कर देखेगा तो आगे बढ़ना मुश्किल है
मैंने कितनी बार कहा था 'देखा पीछे छूट गया'
एक दो बातें कहनी हों तो कहना आसान है
अब हम तुम को क्या बतलाएं क्या क्या पीछे छूट गया
सरतापा सेराब थे ख़ालिद चारों जानिब दरया था
प्यास में जिस दम शिद्दत आई पीछे दरया छूट गया

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