Saturday, May 16, 2009

momin ki shayyiri

असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज राह्तफ़ज़ा नहीं होता

तुम हमारे किसी तरह हुए
वरना दुनिया में क्या नहीं होता

नारसाई से दम रुके तो रुके
मैं किसी से ख़फ़ा नहीं होता

तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता

हाल--दिल यार को लिखूं क्यूं कर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता

दामन उसका जो है दराज़ तो हो
दस्ते आशिक़ रसा नहीं होता

किसको है ज़ौक़--तल्ख़्कामी लैक
जंग बिन कुछ मज़ा नहीं होता

चारा--दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता

क्यों सुने अर्ज़--मुज़्तर मोमिन
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता


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