Sunday, May 31, 2009

unknown

ये दिल तुझे इतनी शिद्दत से चाहता क्यों है
हर साँस के साथ तेरा ही नाम आता क्यों है
तू कितना भी मुझसे तलख़-ए-ताल्लुक रख ले
ज़िक्र फिर भी तेरा मेरी ज़बान पे आता क्यों है
यूँ तो है कई फासले तेरे मेरे बीच
लगता फिर भी तू मुझको मेरी जान सा क्यों है
तेरी फुरकत मैं तड़पने की हो चुकी है आदत मेरी
तेरे दूर होने का फिर भी एहसास मुजको रुलाता क्यों है
ये जानती हु के तुझको नही मोहब्बत मुझसे
मगर फिर भी लब पे मेरे तेरा ही नाम आता क्यों है
है यकीन तुझको पाना न होगा मुमकिन मेरे लिए
ये दिल फिर भी रोज़ उम्मीद की शमा जलाता क्यों है
महसूस की है बेरुखी तेरी बातों में कई बार मैंने
लहजो वो फिर भी तेरा मुझको इतना बता क्यों है
है ख़बर मुझको निकलेगा तू मेरी चाहत का जनाज़ा एक दिन
मन मेरा फिर भी तेरे ख्वाब सजाता क्यों है
गर बिछड़ना ही है तो खुदा हमको मिलाता क्यों है
कमसिन को आखिर वो इतना सताता क्यों है
दिल मेरा तुझको इतनी शिद्दत से चाहता क्यों है
हर साँस के साथ तेरा ही नाम आता क्यों है

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