Sunday, May 31, 2009

unknown

यूँ दोस्त सारे अपने अपने रस्ते बदल गए
कुछ पीछे रुक गए तो कुछ आगे निकल गए
हालात की धुप ज़रा सी देर को तेज़ क्या हुई
जितने वफ़ा के पैकर थे सारे पिघल गए
वादों के तारे रातों से बहार न जा सके
इरादों के दिन निकलने से पहले ही ढल गए
वाफाओ के रंग शबनम के कतरों ने धो दिए
मोहब्बत के फूल जज्बों की शिद्दत से जल गए
तानों के तीर दुनिया की कमानों पे जब चढ़े
सब्र के दामन हाथों से यकदम फिसल गए
आंखें खुली तो खाबों को बुरा लगा मगर
कुछ देर वो रह के मुज़्तरिब ख़ुद ही बेहाल गए
पहले पहले तो अजीब लगे बदले हुए चेहरे
फिर यूँ हुआ के वक्त के साथ हम भी संभल गए

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