Monday, December 22, 2008

ghalib ki shayyiri

घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बगैर ! जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बगैर ! कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुखन[strength to speak] जानु किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बगैर ! काम उसे आ पड़ा है की जिसका जहाँ में लेवा न कोई नाम 'सितमगर' कहे बगैर ! जी में ही कुछ नहीं है हमारे, वर्ना हम सर जाए या रहे, न रहे पर कहे बगैर ! छोडूंगा मैं न उस बुत-ए-काफिर का पुजना छोड़े न खलक को मुझे काफिर कहे बगैर ! मकसद है नाज़-ओ-घमज़ा, वाले गुफ्तुगू में काम चलता नहीं है, दसना-ओ-खंजर कहे बगैर ! हर चाँद हो मुशाहित[God]-ए-हक की गुफतगू बनती नहीं है बाद[wine]-ए-सागर कहे बगैर ! बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्ताफात[mercy] सुनता नहीं हूँ बात मुक़रर[again] कहे बगैर ! 'ग़ालिब' न कर हजूर में तू बार-बार 'अर्ज़ ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बगैर !

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wel come