Monday, December 22, 2008

muzaffar warsi ki shayyiri

हाथ आँखों पे रख लेने से खतरा नहीं जाता दीवार से भूचाल को रोका नहीं जाता दावों के तराजू में तो अजमत नही तुलती फीते से तो किरदार को नापा नहीं जाता फरमान से पेड़ों पे कभी फल नहीं लगते तलवार से मौसम को बदला नहीं जाता चोर अपने घरों में तो नहीं नकाब लगाते अपनी ही कमाई को तो लुटा नहीं जाता औरों के खयालात कि लेते है तलाशी और अपने गिरेबाँ में झाँका नहीं जाता फौलाद से फौलाद तो कट सकता है लेकिन कानून से कानून बदला नहीं जाता तूफ़ान में हो नाव तो कुछ सबर भी आ जाये साहिल पे खड़े होके तो डूबा नहीं जाता दरिया के किनारे तो पहुँच जाते हैं प्यासे प्यासों के घरों तक तो दरिया नहीं जाता अल्लाह जिसे चाहे उसे मिलती है 'मुज़फर' इज्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता

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