Tuesday, March 31, 2009

meer ki shayyiri

ज़ख्म झेले दाग़ भी खाए बोहत
दिल लगा कर हम तो पछताए बोहत
दैर से सू-ए-हरम आया न टुक
हम मिजाज अपना इधर लाये बोहत
फूल, गुल, शम्स-ओ-क़मर सारे ही थे
पर हमें उनमें तुम ही भाये बोहत
गर बुका इस शोर से शब् को है तो
रोवेंगे सोने को हमसाये बोहत
मीर से पूछा जो मैं आशिक हो तुम
हो के कुछ चुपके से शरमाये बोहत

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