अंदाज़ अपने देखते हैं, आईने में वोह
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से हो बेगाना
मकसूद है उस मय से दिल ही में जो खिचती है
मैं तेरी मस्त निगाहों का भरम रख लूँगा
होश आया भी तोह कह दूँगा मुझे होश नहीं
सूरज में लगे धबा फितरत के करिश्मे हैं
बुत हमको कहे काफिर अल्लाह की मर्ज़ी है
न-ताजुर्बकारी से वाइज की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है
वां दिल में के सदमे दो याँ जी में के सब सह लो
उंनका भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है, हम हैं तो खुदा भी है
हंगामा है क्यूँ बरपा थोडी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है