करता हूँ जमा मैं तोह बिखरती है जात और
बाक़ी है कितनी ऐ मेरे मौला, ये रात और !
लेती है जलती शाम’आ भी बुझने में कुछ तोह वक्त
है आदमी सा कोई कहाँ बे-सबात और
सैलाब जैसे लेता है दीवार के क़दम
करता है ग़म भी दिल से कोई वारदात और
यूँ तोह हुजूर-ऐ-पाक (सव) के लाखों हैं माद्दाख्वाँ
ताइब सी लिख रहा है मगर कौन नअत और
मजहर, अजल के हुस्न के 'अमजद' हैं बे-शुमार
लेकिन जो देखिये तोह है बारिश की बात और
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
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Friday, May 29, 2009
amjad islam amjad ki shayyiri
ख्वाब नगर है ऑंखें खोले देख रहा हूँ
उसको अपनी जानीब आते देख रहा हूँ
किस की आह्ट करया करया[village/town] फैल रही है
दीवारों के रंग बदलते देख रहा हूँ
कौन मेरे जादू से बच कर जा सकता है
आईना हूँ, सब के चेहरे देख रहा हूँ
दरवाज़े पर तेज़ हवाओं का पहरा है
घर के अन्दर चुप पे साए देख रहा हूँ
जैसे मेरा चेहरा मेरे दुश्मन का हो
आईने में ख़ुद को ऐसे देख रहा हूँ
मंज़र मंज़र वीरानी ने जाल ताने हैं
गुलशन गुलशन बिखरे पत्ते देख रहा हूँ
मंजिल मंजिल होल में डूबी आवाजें हैं
रास्ता रास्ता खौफ्फ़ के पहरे देख रहा हूँ
शहर संगदलाल में 'अमजद' हर पस्ते पर
आवाजों के पत्थर चलते देख रहा हूँ
उसको अपनी जानीब आते देख रहा हूँ
किस की आह्ट करया करया[village/town] फैल रही है
दीवारों के रंग बदलते देख रहा हूँ
कौन मेरे जादू से बच कर जा सकता है
आईना हूँ, सब के चेहरे देख रहा हूँ
दरवाज़े पर तेज़ हवाओं का पहरा है
घर के अन्दर चुप पे साए देख रहा हूँ
जैसे मेरा चेहरा मेरे दुश्मन का हो
आईने में ख़ुद को ऐसे देख रहा हूँ
मंज़र मंज़र वीरानी ने जाल ताने हैं
गुलशन गुलशन बिखरे पत्ते देख रहा हूँ
मंजिल मंजिल होल में डूबी आवाजें हैं
रास्ता रास्ता खौफ्फ़ के पहरे देख रहा हूँ
शहर संगदलाल में 'अमजद' हर पस्ते पर
आवाजों के पत्थर चलते देख रहा हूँ
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