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Friday, June 5, 2009

faiz ki shayyiri

दोनों जहाँ तेरी मुहबत में हार के
वो जा रहा है कोई शब्-ए-ग़म गुजार के
वीरान है मैकदा, खुम-ऑ-साग़र(wine pitcher and glass) उदास है
तुम क्या गए के रूठ गए दिन बहार के
एक फुरसत--गुनाह(oppurtunity of sin) मिली, वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिल-फरेब हैं ग़म रोज़गार के
भूले से मुस्कुरा जो दिए थे वो आज "फैज़"
मत पूछ वलवाले दिल-ए-न'कारदाकर के

Thursday, June 4, 2009

faiz ki shayyiri

आ की वाबस्ता है उस हुस्न की यादें तुझसे
जिसने इस दिल को परी_खाना बना रखा था
जिसकी उल्फत में भुला रखी थी दुनिया हमने
दहर को दहर का अफसाना बना रखा था

आशना हैं तेरे क़दमों से वोह रहें जिन पर
उसकी मदहोश जवानी ने इनायत की है
कारवां गुज़रे हैं जिनसे इसी राअनाई के
जिसकी इन् आंखों ने बे-सूद इबादत की है

तुझसे खेली हैं वोह महबूब हवाएँ जिन में
उसके मलबूस की अफसुर्दा म्रहक बाकी है
तुझपे भी बरसा है उस बाम से महताब का नूर
जिस में बीती हुई रातों की कसक बाकी है

तुने देखी है वोह पेशानी, वोह रुखसार, वोह होंट
जिंदगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने
तुझपे उठी हैं वोह खोई खोई साहिर आँखें
तुझको माल्लुम है क्यों उम्र गँवा दी हमने

हम पे मुश्तरक हैं एहसान ग़म-ए-उल्फत के
इतने एहसान की गिनवाऊं तो गंवा न सकूँ
हमने इस इश्क में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तेरे और को समझाऊं तो समझा न सकूं

Tuesday, June 2, 2009

faiz ki shayyiri

न गई तेरे गम की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए

wel come