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Friday, June 5, 2009

iram lucknawi ki shayyiri

वो ये कह्ते हैं के जाब अब रुस्तगारी हो गई
ऐ मुहब्बत और ये ज़ंजीर भारी हो गई
आस क्या क्या थी उनसे हमदर्दी की थी और आज वो
आए, देखा, कुछ न पुछा, ग़म-गुसारी हो गई
खींचते थे, ख़ुद चले आए खींचे मेरी तरफ़
इख्तियारी थी कशिश, बे-इख्तियारी हो गई
जैसे दिल की आग भड़काना उसी का फ़र्ज़ था
इस तरफ़ से आग यूँ बाद-बाहरी हो गई
कोई कुछ समझे मगर हस्सास[senstive] दिल की मौत है
ख़तम जिस मंजिल पर आ कर बेकरारी हो गई
खाक-ए-राह बन कर किया था खैर-मकदम[welcome] इश्क का
फिर वही ताजीम[respect] शान-ए-वजादारी[conduct] हो गई
आईने में अपनी सूरत देखे जाता था मैं
दफअतन[at once] पेश-ए-नज़र सूरत तुम्हारी हो गई
दिल से यूँ रुखसत हुई दिल की तमन्ना-ए-'इरम'
और भी मिटी हुई तस्वीर प्यारी हो गई

wel come