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Monday, June 1, 2009

Dr.naseem uz zafar ki shayyiri

सिवा-ए-ग़म कोई मौसम सदा बहार नही
ग़म न हो तो खुशी का भी ऐतबार नही
है कर्बला में अजब मौत और हयात की ज़ंग
मौत ढूंढती है और नहेई फरार नही
अली की नस्ल कहाँ जो न मौत से खेले
वो चराग क्या जिन्हें आंधी का इंतज़ार नही
हुसैन फतह का मयार ही बदल डाला
जंग हार गए फिर भी है ये हार नही
नयाज़-ओ-नाज़ खुदा से वही वही सजदे
हुसेन तू तो है खंजर भी बे_वकार नही
हुसेन के लिए रख दो पिसर की कुर्बानी
खलील आप उठा लें ये ऐसा बार नही
सब आंसुओं की साबेलें उन्हीं की प्यास के नाम
किसी फुरात का प्यासों को इंतज़ार नही
कब अहल-ए-बेत की मिदहत का अजर मांगता हूँ
नसीम मेरी इबादत है कारोबार नही

Dr.naseem uz zafar ki shayyiri

ऐ ज़मीर-ए-आदमी तुझको खुदा जिंदा रखे
वो कहाँ मरते हैं जिनको कर्बला जिंदा रखे
जिंदगी की जंग में बाजू कट भी जाएँ तोः
हौसला बाकी मेरा, मुश्किल कुशा जिंदा रखे
मौत ये कह कर मेरी बाली से वापिस हो गई
तुम जियो जब तक अली-ए-मुर्तज़ा जिंदा रखे
साहिब-ए-नह्ज उल बलाघाह इतनी इल्तेजा है बस
तेरी बीती शाम में, लहजा तेरा जिंदा रखे
कब्र में रख कर मुझे अजीजों ने दुआ दी ये 'नसीम'
जाने वाले जा तुझे खाक--शिफा जिंदा रखे

wel come