कभी हौसले दिल के हम भी निकालें
इधर आओ, तुमको गले से लगा लें
भला ज़ब्त की भी कोई इन्तहा है
कहाँ तक तबियत को अपनी संभालें
ये माना की आज़ुर्दः[unhappy] तुमसे हमीं थे
मगर आओ अब हम ही तुम्ही को मना लें
"अज़ीज़' अपना ज़ख्म-ए-जिगर तो दिखा दें
मगर दोनों हाथों से वो दिल संभालें