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Friday, May 22, 2009

kavi kulwant ji ki shayyiri

जब से तेरी रोशनी आ रूह से मेरी मिली है ।
अपने अंदर ही मुझे सौ सौ दफा जन्नत दिखी है ॥
आस क्या है, ख्वाब क्या है, हर तमन्ना छोड़ दी,
जब से नन्ही बूंद उस गहरे समंदर से मिली है ।
प्रात बचपन, दिन जवानी, शाम बूढ़ी सज रही,
खुशनुमा हो हर घड़ी अब शाम भी ढ़लने लगी है ।
गम जुदाई का न करना, चार दिन की जिंदगी,
ठान ली जब मौत ने किसके कहने से टली है ।
गीत गाओ अब मिलन के, है खुशी की यह घड़ी,
यार अपनी सज के डोली अब तो रब के घर चली है ।

kavi kulwant ji ki shayyiri

शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया ।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची,
पर नोंच मुझे उसने जमीं पर है गिराया ।
गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा,
आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया ।
कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई,
मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया ।

kavi kulwant ji ki shayyiri

मिली मुझे दुनिया सारी जब मिला मौला
भुला दूँ मै खुद को नाम की पिला मौला .
गमों से टूट रहा शख्स हर यहां रोता
भरा दुखों से जहाँ तुमसे है गिला मौला
चमन बना सहरा गुल यहां रहे मुर्झा
बहार यूँ निखरे हर कली खिला मौला.
दिखा चुका अपने खेल खूब वह शैतां
सदा सदा के लिए अब उसे सुला मौला
बदी को भूल के इंसा करे मोहब्बत बस
दिलों में प्रीत की ऐसी अलख जला मौला
करें सभी हर पल बंदगी खुदा तेरी
तुझे पा जाने का मौका तो इक दिला मौला

Thursday, May 21, 2009

kavi kulwant ji ki shayyiri

जब से तेरी रोशनी आ रूह से मेरी मिली है ।
अपने अंदर ही मुझे सौ सौ दफा जन्नत दिखी है ॥

आस क्या है, ख्वाब क्या है, हर तमन्ना छोड़ दी,
जब से नन्ही बूंद उस गहरे समंदर से मिली है ।

प्रात बचपन, दिन जवानी, शाम बूढ़ी सज रही,
खुशनुमा हो हर घड़ी अब शाम भी ढ़लने लगी है ।

गम जुदाई का न करना, चार दिन की जिंदगी,
ठान ली जब मौत ने किसके कहने से टली है ।

गीत गाओ अब मिलन के, है खुशी की यह घड़ी,
यार अपनी सज के डोली अब तो रब के घर चली है ।

Wednesday, May 20, 2009

kavi kulwant ji ki shayyiri

मै जब भी हूँ किसी इंसां के करीब जाता ।
अल्लाह तेरा बस तेरा ही वजूद पाता ॥

कितने ही चांद सूरज अंबर में हैं विचरते,
हर कोई ऐसा लगता, चक्कर तेरा लगाता ।

देख जो मैने फूलों को खिलते औ महकते
तुम्हारी बंदगी में, सर है झुका ही जाता ।

देखा जो मैने चिडिय़ॊं को उड़ते औ चहकते,
जर्रा यहां का हर, तेरी याद है दिलाता ।

रख ले मुझे हमेशा अपनी शरण में मौला,
दिल बार बार तुझको आवाज़ है लगाता ।

कवि कुलवंत सिंह

kavi kulwant ji ki shayyiri

main jab bhi hun kisi insan ke kareeb jaata !
allah tera bas teri hi wajood paata !!

kitne hi chaand suraj ambar mein hai vicharte,
har koi aise lagta, chakkar tera lagaata !
dekha jo maine phoolon ko khilte aur mehkate
tumhari bandgi mein, sar hai jhuk hi jaata !

dekha jo maine chidiyon ko udd'te aur chehkate
zarra yahan ka har, teri yaad hai dilaata !

rakh le mujhe hamesha apni sharan mein maula,
dil baar baar tujhko aawaz hai lagaata !

Tuesday, May 12, 2009

kavi kulwant ji ki shayyiri

इतना भी ज़ब्त मत कर आँसू न सूख जाएँ
दिल में छुपा न ग़म हर आँसू न सूख जाएँ

कोई नहीं जो समझे दुनिया में तुमको अपना
रब को बसा ले अंदर आँसू न सूख जाएँ

अहसास मर न जाएँ, हैवान बन न जाऊँ
दो अश्क हैं समंदर आँसू न सूख जाएँ

मंजर है खूब भारी अपनों ने विष पिलाया
देवों से गुफ़्तगू कर आँसू न सूख जाएँ

कैसे जहाँ बचे यह आँसू की है न कीमत
दुनिया बचा ले रोकर आँसू न सूख जाएँ

Monday, May 4, 2009

kavi kulwant ji ki shayyiri

शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया ।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची,
पर नोंच मुझे उसने जमीं पर है गिराया ।
गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा,
आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया ।
कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई,
मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया

कवि कुलवंत सिंह

kavi kulwant ji ki shayyiri

गज़ल - चले जाते हैं लोग

प्यार का इजहार करके क्यूँ चले जाते हैं लोग ।

कैसे जी पाते हैं वह हम तो लगा लेते हैं रोग ॥
चांद तारों को मैं जब भी देखता हूं साथ साथ,
यार मेरा लगता लौटेगा मिटाकर अब वियोग ।
कैसे भूलूँ उन पलों को साथ जो हमने बिताए,
रब की धरती पर मिला आशीष था कैसा सुयोग,
आ गले से लग ही जाओ, चंद सांसे ही बची हैं,
दो मुझे जीवन नया, अपना मिटा लो तुम भी सोग ।
याद तुमको गर नही हम, था जताया प्यार तुमने,
जिंदगी में तुम किसी के, अब न करना यह प्रयोग ।

kavi kulwant ji ki shayyiri

गज़ल - बड़े हम जैसे होते हैं

बड़े हम जैसे होते हैं तो रिश्ता हर अखरता है ।

यहां बनकर भी अपना क्यूँ भला कोई बिछड़ता है ।
सिमट कर आ गये हैं सारे तारे मेरी झोली में,
कहा मुश्किल हुआ संग चांद अब वह तो अकड़ता है ।
छुपा कान्हा यहीं मै देखती यमुना किनारे पर,
कहीं चुपके से आकर हाथ मेरा अब पकड़ता है ।
घटा छायी है सावन की पिया तुम अब तो आ जाओ,
हुआ मुश्किल है रहना अब बदन सारा जकड़ता है ।
जिसे सौंपा था मैने हुश्न अपना मान कर सब कुछ,
वही दिन रात देखो हाय अब मुझसे झगड़ता है ।

kavi kulwant ji ki shayyiri

गज़ल - भरम पाला था..

भरम पाला था मैने प्यार दो तो प्यार मिलता है ।

यहाँ मतलब के सब मारे न सच्चा यार मिलता है ।
लुटा दो जां भले अपनी न छोड़ें खून पी लेंगे,
जिसे देखो छुपा के हाथ में तलवार मिलता है ।
बहा लो देखकर आँसू न जग में पोंछता कोई,
दिखा दो अश्क दुनिया को तो बस धिक्कार मिलता है ।
नही मै चाहता दुनिया मुझे अब थोड़ा जीने दो,
मिटाकर खुद को देखो तो भी बस अंगार मिलता है ।
मै पागल हूँ जो दुनिया में सभी को अपना कहता हूँ,
खफा यह मुझसे हैं उनका मुझे दीदार मिलता है ।
मुखौटा देख लो पहना यहाँ हर आदमी नकली
डराना दूसरे को हो सदा तैयार मिलता है ।

kavi kulwant ji ki shayyiri

यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥

दिये हैं जख्म उसने इतने गहरे भर न पाएंगे,

भरोसा उठ गया अब आदमी हैवान दिखता है ।

शिकायत करते हैं तारे जमीं पर आके अब मुझसे,

है मुश्किल देखना इंसां को नंगा नाच करता है ।

वजह है दोस्ती और दुश्मनी की अब तो बस पैसा,

जरूरत पड़ने पर यह दोस्त भी अपने बदलता है ।

है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है ।
भले कितनी गुलाटी मार ले चालाक बन इंसां

न हो मरजी खुदा की तब तलक पानी ही भरता है ।

बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,

हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।

kavi kulwant ji ki shayyiri

गज़ल - यकीं किस पर करूँ ?

यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।

दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
दिये हैं जख्म उसने इतने गहरे भर न पाएंगे,
भरोसा उठ गया अब आदमी हैवान दिखता है ।
शिकायत करते हैं तारे जमीं पर आके अब मुझसे,
है मुश्किल देखना इंसां को नंगा नाच करता है ।
वजह है दोस्ती और दुश्मनी की अब तो बस पैसा,
जरूरत पड़ने पर यह दोस्त भी अपने बदलता है ।
है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है ।
भले कितनी गुलाटी मार ले चालाक बन इंसां
न हो मरजी खुदा की तब तलक पानी ही भरता है ।
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।

Wednesday, March 18, 2009

kavi kulwant ji ki shayyiri

जब से तेरी रोशनी आ रूह से मेरी मिली है ।
अपने अंदर ही मुझे सौ सौ दफा जन्नत दिखी है ॥

kavi kulwant ji ki shayyiri

जब से तेरी रोशनी आ रूह से मेरी मिली है ।
अपने अंदर ही मुझे सौ सौ दफा जन्नत दिखी है ॥

आस क्या है, ख्वाब क्या है, हर तमन्ना छोड़ दी,
जब से नन्ही बूंद उस गहरे समंदर से मिली है ।

प्रात बचपन, दिन जवानी, शाम बूढ़ी सज रही,
खुशनुमा हो हर घड़ी अब शाम भी ढ़लने लगी है ।

गम जुदाई का न करना, चार दिन की जिंदगी,
ठान ली जब मौत ने किसके कहने से टली है ।

गीत गाओ अब मिलन के, है खुशी की यह घड़ी,
यार अपनी सज के डोली अब तो रब के घर चली है ।

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