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Friday, June 5, 2009

manzar ki shayyiri

दिल है हीरे कि कणी, जिस्म गुलाबू वाला
मेरा महबूब है दरअसल किताबों वाला
हुस्न है रंग है शोखी है अदा है उस में
एक ही जाम मगर कितनी शराबो वाला
यार आईना हुआ करते हैं यारो के लिये
तेरा चेहरा तो अभी तक है नकाबो वाला
मुझसे होगी नहीं दुनिया यें तिजारत दिल की
मैं करूँ कया के मेरा ज़हन है खवाबो वाला
तू रहेगा ना तेरे ज़ुल्म रहेंगे बाकी
दिन तो आना है किसी रोज़ हिसाबो वाला
हुस्न-ए-बेबाक से हो जाती है आँखें रोशन
दिल में उतारा है मगर रूप हिजाबों वाला
जो नज़र अता है हासिल नही होता "मंज़र"
जिंदगानी का सफर भी है सरबो वाला

wel come