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Saturday, June 6, 2009

tassawar mehmood ki shayyiri

मेरे लब-ओ-कलम के उज्ज को कोई ऐसा हुनर-ए-कमाल दे
जो मेरी खाव्हिशों के झुंड को तकमील के दर्जे में ढाल दे
मेरी खिल्वातों के ए राजदां, मेरी जल्वतों के रफीक सुन
किसी से कुछ भी हो के वोह चूम कर मेरे इन् लबों को प्यार से
मेरी रूह के ज़ख्म समेत ले, मुझे जन्कनी से निकाल दे
तेरी चाहतों के देस में मेरे रोज़--शब् तमाम हो
तेरे बिछड़ने का कोई डर हो, मुझे ऐसे मह--साल दे
मेरी बेबसी को जुबां मिले, मेरी कम निगाही उजाल दे
के जहाँ से कुछ न तलब रहे, मुझे ऐसा इजन-ए-सवाल दे
मुझे उमर भर नसीब हो, मेरी जिंदगी पे मोहीत हो
जो कभी भी ख़तम न हो सके, मुझे ऐसा कोई विसाल दे

wel come