गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते है
हम चिरागों की तरह, शाम से जल जाते हैं
शमा जिस आग से जलती है, नुमिश के लिए
हम उसी आग में, गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है तेरा नाम, मेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग, मेरे नाम से जल जाते हैं
तुझसे मिलने पे मुझे, क्या कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे, पैगाम से जल जाते हैं
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
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Saturday, June 6, 2009
Friday, June 5, 2009
qateel shifai ki shayyiri
लिख दिया अपने दर पे किसी ने
इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को
इस का इज़हार करना मना है
पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गया है
उंनका दीदार करना मना है
जाग उठे तो आहें भरेंगे
हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गए हैं जो फिरक़त के मारे
उनको बेदार करना माना है
हमने की अर्ज़ ऐ ! बंदा_परवर
क्यूँ सितम धा रहे हो ये हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले
हमसे तकरार करना माना है
खा ना जाना 'क़तील' उनका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में
शौक़-ए-दीदार करना मना है
लिख दिया अपने दर पे किसी ने
इस जगह प्यार करना मना है
इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को
इस का इज़हार करना मना है
पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गया है
उंनका दीदार करना मना है
जाग उठे तो आहें भरेंगे
हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गए हैं जो फिरक़त के मारे
उनको बेदार करना माना है
हमने की अर्ज़ ऐ ! बंदा_परवर
क्यूँ सितम धा रहे हो ये हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले
हमसे तकरार करना माना है
खा ना जाना 'क़तील' उनका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में
शौक़-ए-दीदार करना मना है
लिख दिया अपने दर पे किसी ने
इस जगह प्यार करना मना है
Thursday, June 4, 2009
qateel shifai ki shayyiri
तुने ये फूल जो जुल्फों में सजा रखा है
एक दीया है जो अंधेरों में जला रखा है
जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
जिंदगी ने मुझे दाव पे लगा रखा है
जाने कब आए कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिए मैंने गिरेबान खुला रखा है
इम्तेहान और मेरे ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है
दिल था एक शोला मगर बीत गया दिन वो 'क़तील'
अब कुरेदो न इससे राख में क्या रखा है
एक दीया है जो अंधेरों में जला रखा है
जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
जिंदगी ने मुझे दाव पे लगा रखा है
जाने कब आए कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिए मैंने गिरेबान खुला रखा है
इम्तेहान और मेरे ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है
दिल था एक शोला मगर बीत गया दिन वो 'क़तील'
अब कुरेदो न इससे राख में क्या रखा है
Monday, June 1, 2009
qateel shifai ki shayyiri
गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे
गुजरो जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे
मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख्स
उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे
मैं इस लिए मानता नही वस्ल की खुशी
मेरे रकीब की न मुझे बद_दुआ लगे
वो कहत दोस्ती का पड़ा है इन् दिनों
जो मुसकुरा के बात करे आशना लगे
तर्क-ऐ-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'क़तील'
मुझको सताये कोई तो उसको बुरा लगे
गुजरो जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे
मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख्स
उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे
मैं इस लिए मानता नही वस्ल की खुशी
मेरे रकीब की न मुझे बद_दुआ लगे
वो कहत दोस्ती का पड़ा है इन् दिनों
जो मुसकुरा के बात करे आशना लगे
तर्क-ऐ-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'क़तील'
मुझको सताये कोई तो उसको बुरा लगे
qateel shifai ki shayyiri
लोग कह्ते हैं नील-कमल जिसे वो तो 'क़तील'
शब् को उन झील सी आंखों में खिला करता है
शब् को उन झील सी आंखों में खिला करता है
Saturday, May 30, 2009
qateel shifai ki shayyiri
मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
एक दूसरे के याद में रोया करेंगे हम
आंसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम
जब दूरियों की याद दिलों को जलायेगी
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम
गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी 'क़तील'
साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम
एक दूसरे के याद में रोया करेंगे हम
आंसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम
जब दूरियों की याद दिलों को जलायेगी
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम
गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी 'क़तील'
साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम
Friday, May 29, 2009
qateel shifai ki shayyiri
चराग बन के जला जिसके वास्ते इक उमर
चला गया वो हवा के सपुर्द कर के मुझे
मैं अपनी जात में नीलम हो गया हूँ 'क़तील'
ग़म-ऐ-हयात से कह दो खरीद ले मुझे
चला गया वो हवा के सपुर्द कर के मुझे
मैं अपनी जात में नीलम हो गया हूँ 'क़तील'
ग़म-ऐ-हयात से कह दो खरीद ले मुझे
Thursday, May 21, 2009
Saturday, May 2, 2009
qateel shifai ki shayyiri
मेरे हमनशीं मेरी कदर कर, मैं बनुगा फिर तेरा हमसफ़र
जो हुआ बिहिश्त बदर[स्वर्ग से निकला हुआ] कभी, उसी आदमी का बदल हूँ मैं !!!
जो हुआ बिहिश्त बदर[स्वर्ग से निकला हुआ] कभी, उसी आदमी का बदल हूँ मैं !!!
Friday, April 17, 2009
qateel shifai ki shayyiri
जो वो हौवा कि बेटी है तो मैं आदम का बेटा हूँ
मुझे उसकी ज़रुरत है, उसे मेरी ज़रुरत है
मुझे उसकी ज़रुरत है, उसे मेरी ज़रुरत है
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