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Saturday, June 6, 2009

haali ki shayyiri

हक-ए-वफ़ा जो हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे !
हमको जीना पड़ेगा फुरकत में
वो अगर हिम्मत आजमाने लगे !
डर है मेरी जुबा न खुल जाए
अब वो बातें बहुत बनने लगे!
जान बचती नज़र नही आती
गैर उल्फत बहुत जताने लगे!
तुमको करना पड़ेगा उनंजे ज़फा
हम अगर दर्द-ए-दिल सुनाने लगे!
बहुत मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हम आखिर को जी चुराने लगे !
वक्त रुखसत था सख्त "हाली" पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे !
हक-ए-वफ़ा जो हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे !

Thursday, May 21, 2009

haali ki shayyiri

इक उम्र चाहिए की गवारा हो नेशे[डंक]-इश्क
राखी है आज लज़्ज़ते-ज़ख्मे-जिगर कहाँ


wel come