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Thursday, June 4, 2009

jaun elia ki shayyiri


अभी फरमान आया है वहाँ से
के हट जाऊं मैं अपने दरमियाँ से
यहाँ जो है तानाफुस ही में कम है
परिंदे उड़ रहे हैं शाख-ए-जाँ से
दरीचा बाज़ है यादों का और मैं
हवा सुनता हूँ पेड़ों की ज़बान से
था अब तक मारका बाहर का दरपेश
अभी तो घर भी जाना है यहाँ से
फलां से बेहतर थी ग़ज़ल फलां की
फलां के ज़ख्म अच्छे थे फलां से
ख़बर क्या दूँ मैं शहर-ए-रफ्तुगान की
कोई लौटे भी शहर-ए-रफ्तुगान से
यही अंजाम क्या तुझको हवास था
कोई पूछे तो मीर-ए-दास्ताँ से

jaun elia ki shayyiri

दिल परेशां है, क्या किया जाये
अक्ल हैरान है, क्या किया जाये
शौक़-ए-मुश्किल-पसंद, उंनका हसूल[attainment]
सख्त आसन है, क्या किया जाए
इश्क-ए-खूबां[love of beautiful ppl] के साथ ही हम में
नाज़-ए-खूबां[pride of beautifuk ppl] है, क्या किया जाये
बे-सबब ही मेरी तबियत-ए-ग़म
सब से नालां[complaining] है, क्या किया जाये
बावजूद उनकी दिल-नवाजी के
दिल गुरेज़ाँ है, क्या किया जाये
मैं तो नकद-ए-हयात लाया था
जिन्स अरजाँ[cheap] है, क्या किया जाये
हम समझते थे इश्क को दुशवार
ये भी आसान है, क्या किया जाए
वो बहारों की नाज़-परवर्दह
हम पे नाजां है क्या किया जाये
मिस्र-ए-लुत्फ़-ओ-करम में भी ऐ 'जौन'
याद-ए-किनां है क्या किया जाए

jaun elia ki shayyiri

एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं'
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं
अब है बस अपना सामना दरपेश[to confront]
हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
वोही नाज़-ओ-अदा, वोही गमज़े[amorous glances]
सर-बा-सर आप पर गया हूँ मैं
अजाब इल्ल्ज़म हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वां उमर भर गया हूँ मैं
तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे तरह, ख़ुद से डर गया हूँ मैं
कू-ए-जाना[beloved'shome] में सोग बरपा है
के अचानक सुधर गया हूँ मैं

Monday, June 1, 2009

jaun elia ki shayyiri

हालत-ऐ-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया, शौक़ की जिंदगी गई
एक ही हादिसा तो है और वो ये के आज तक
बात नहीं कही गई, बात नहीं सुनी गई
बाद भी तेरे जाँ-ए-जा दिल में रहा अजाब समान
याद रही तेरी यहाँ, फिर तेरी याद भी गई
उसके बदन को दी नमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक काबा भी सी गई
उसकी उम्मीद-ए-नाज़ का हमसे ये मान था के आप
उमर गुज़र दीजिये, उमर गुजार दी गई
उसके विसाल के लिए, अपने कमाल के लिए
हालत--दिल के थी ख़राब, और ख़राब की गई
तेरा फिराक जाँ--जा ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक में खूब शराब पी गई
उसकी गली से उठ के मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गई

Friday, May 29, 2009

jaun elia ki shayyiri

कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तोह आशोनाक सूरत है
अंजुमन में ये मेरी खामोशी
बुरदबारी नहीं है वहशत है
तुझसे ये गाह गाह का शिकवा
जब तलक है बस-गनीमत है
ख्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गयीं
ये अज़ीयत बड़ी अज़ीयत है
लोग मसरूफ जानते हैं मुझे
यान मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है
तंज़ पैरा--तबस्सुम में
इस तकल्लुफ की क्या ज़रूरत है
हम ने देखा तोह हम ने ये देखा
जो नहीं है वो खुबसूरत है
वार करने को जानिसार आयें
ये तोह ईसार है इनायत है
गर्म-जोशी और इस कदर क्या बात
क्या तुम्हें मुझसे कुछ शिकायत है
अब निकल आओ अपने अन्दर से
घर में सामन की ज़रूरत है
आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पाऊ तक बदन सलामत है

Friday, May 22, 2009

jaun elia ki shayyiri

एक ही मुज्ह्दः[glad tiding] सुबह लाती है
सहन में धूप फैल जाती है
कया सितम है कि अब तेरी सूरत
गौर करने पे याद आती है
सोचता हूँ कि उसकी याद आखिर
अब किसे रात भर जगाती है
उस वफ़ा-आशना[who know fidelity] कि फुरक़त में
ख्वाहिश-ए-गैर क्यूँ सताती है
कौन इस घर कि देख-भाल करे
रोज़ एक चीज़ टूट जाती है

jaun elia ki shayyiri

हम अपने आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते
चुप रहते हैं, दुःख सहते हैं, कोई रंज--मलाल नहीं करते
हम हार गए, तुम जीत गए, हमने खोया तुमने पाया
इन झूठी सच्ची बातों का हम कोई ख्याल नहीं करते
तेरे दीवाने हो जाते हैं, कहीं सहराओं में खो जाते हैं
दीवार--दर में क़ैद हमें अगर अहल--अयाल (परिवार-जन) नहीं करते
तेरी मर्ज़ी पर हम राज़ी हैं, जो तू चाहे वो हम चाहे
हम हिज्र कि फिकर नहीं करते, हम जिक्र--विसाल नहीं करते
हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से कया लेना-देना
हम सब को जवाब नहीं देते, हमसे सवाल नहीं करते
ग़ज़लों में हमारी बोलता है वोही, कानों में रस घोलता है
वही बंद किवाड़ खोलता है, हम कोई कमाल नहीं करते

wel come