Friday, May 29, 2009

jaun elia ki shayyiri

कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तोह आशोनाक सूरत है
अंजुमन में ये मेरी खामोशी
बुरदबारी नहीं है वहशत है
तुझसे ये गाह गाह का शिकवा
जब तलक है बस-गनीमत है
ख्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गयीं
ये अज़ीयत बड़ी अज़ीयत है
लोग मसरूफ जानते हैं मुझे
यान मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है
तंज़ पैरा--तबस्सुम में
इस तकल्लुफ की क्या ज़रूरत है
हम ने देखा तोह हम ने ये देखा
जो नहीं है वो खुबसूरत है
वार करने को जानिसार आयें
ये तोह ईसार है इनायत है
गर्म-जोशी और इस कदर क्या बात
क्या तुम्हें मुझसे कुछ शिकायत है
अब निकल आओ अपने अन्दर से
घर में सामन की ज़रूरत है
आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पाऊ तक बदन सलामत है

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