होते हैं उनंके नाम से बरपा मुशाइरे
मयार-ए-शेर उनकी बला से गिरे गिरे
जो हैं ज़मां साज़ वोह हैं आज कामयाब
अहल-ए-कमल गोशा-ए-उज्लत में हैं पड़े
जिनका रुसूख है उन्हें पहचानते हैं सब
हम देखते ही रह गए बाहर खड़े खड़े
वेबिस्तों पे लोग हैं खुश-फ़हमी के शिकार
न आशना-ए-हाल हैं हम साए भी मेरे
जिंदा थे जब तो उनको कोई पूछता न था
हर दौर में मिलेंगे बोहत ऐसे सर फिरे
बर्की सितम ज़रीफी-ए-हालात देखिये
अब उनंके नाम पर है इदारे बड़े बड़े