Showing posts with label तौहीद मैकश. Show all posts
Showing posts with label तौहीद मैकश. Show all posts

Saturday, June 6, 2009

tauheed maikash ki shayyiri

पर जो जल जाए तो परवाज़ पे हर्फ़ आता है
अपने जीने के हर हर अंदाज़ पे हर्फ़ आता है
चीखते रहना मोअस्सिर नहीं होता अक्सर
हलक जो खुश्क हो तो आवाज़ पे हर्फ़ आता है
फण है शर्मिंदा बोहत लर्जिश-ए-आसाब के साथ
कभी नगमा पे कभी साज़ पे हर्फ़ आता है
जिसके बाजू में रही कुव्वत-ए-यलगार नहीं
उसकी तो फितरत-ए-शाहबाज़ पे हर्फ़ आता है
अपने काबू में ज़ुबाँ जब नहीं रहती 'मैकश'
दिल में पोशीदा हर एक राज़ पे हर्फ़ आता है

wel come