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Friday, June 5, 2009

daag dehlvi ki shayyiri

मुहब्बत में करे क्या कुछ किसी से हो नहीं सकता
मेरा मरना भी तो मेरी खुशी से हो नहीं सकता
न रोना है तरीके का, न हँसना है सलीके का
परेशानी में कोई काम जी से हो नहीं सकता
खुदा जब दोस्त है, ऐ ! 'दाग', क्या दुश्मन से अंदेशा
हमारा कुछ किसी की दुश्मनी से हो नहीं सकता

daag dehlvi ki shayyiri

गम से कहीं नजात मिले चैन पायें हम
दिल खून मैं नहाए तो गंगा नहाए हम
जानत मैं जाए हम की जहन्नुम मैं जाएँ हम
मिल जाए तू कहीं ण कहीं तुझको पायें हम
मुमकिन है ये की वादे पे अपने वो आ भी जाए
मुश्किल ये है की आप मैं उस वक्त आयें हम
नाराज हो खुदा तो करें बंदगी से खुश
माशूक रूठ जाए तो क्योंकर मनाएँ हम
सर दोस्तों के काटकर रखे हैं सामने
गैरों से पूछते हैं क़सम किसकी खाएं हम
सौंपा तुम्हें खुदा को चले हम तो नामुराद
कुछ पड़ के बखाशाना जो कभी याद आयें हम
ये जान तुम ण लोगे अगर आप जायेगी
इस बेवफा की खैर कहाँ तक मनाएँ हम
हमसाये जागते रहे नालों से रात भर
सोये हुए नसीब को क्यूंकर जगाये हम
तू भूलने की चीज नहीं खूब याद रख
ए 'दाग' किस तरह तुझे दिल से भुलाएँ हम

Friday, May 29, 2009

daag dehlvi ki shayyiri

न रवा कहिये, न सज़ा कहिये
कहिये कहिये, मुझे बुरा कहिये
दिल में रखने की बात है ग़म-ऐ-इश्क
इसको हरगिज़ न बरमला कहिये
वे मुझे क़त्ल करके कह्ते हैं
मानता ही न था ये, क्या कहिये
आ गई आप को मसीहाई
मरने वालो को मरहबा कहिये
होश उड़ने लगे रकीबों के
"दाग" को और बेवफा कहिये

daag dehlvi ki shayyiri

गज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया
हँसा हँसा के शब्-ऐ-वस्ल अश्कबार किया
तसल्लियाँ मुझे दे दे के बेकरार किया
हम ऐसे महव-ऐ-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तगाफुल ने होशियार किया
फ़साना-ऐ-शब्-ऐ-गम उन्को एक कहानी थी
कुछ ऐतबार किया और कुछ न-ऐतबार किया
ये किसने जलवा हमारे सर-ऐ-मजार किया
कि दिल से शोर उठा, हाय !!! बेकरार किया
तड़प फिर ऐ दिल-ऐ-नादाँ, की गीर कह्ते हैं
आख़िर कुछ न बनी, सबर इख्तियार किया
भुला-भुला के जताया है उन्को राज़-ऐ-निहा
छिपा-छिपा के मोहब्बत को आशकार किया
तुम्हे तोह वादा-ऐ-दीदार हमसे करना था
ये क्या किया के जहाँ को उमीदवार किया
ये दिल को ताब कहाँ है के हो मालान्देश
उंन्होने वादा किया हमने ऐतबार किया
न पूछ दिल की हकीक़त मगर ये कह्ते हैं
वो बेकरार रहे जिसने बेकरार किया
कुछ आगे दावर-ऐ-महशर से है उमीद मुझे
कुछ आप ने मेरे कहने का ऐतबार किया

daag dehlvi ki shayyiri

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ऐ-यार होता
कभी जान सदके होती कभी दिल निसार होता
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई गैर- गैर होता कोई यार-यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
न तुम्हे करार होता न हमें करार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सबर करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ऐतबार होता

daag dehlvi ki shayyiri

रस्म-ए-उल्फत सिखा गया कोई
दिल की दुनिया पे छा गया कोई
ता_क़यामत किसी तरह न बुझे
आग ऐसी लगा गया कोई
दिल की दुनिया उजड़ी सी क्यूँ है
क्या यहाँ से चला गया कोई
वक्त-ऐ-रुखसत गले लगा कर 'दाग'
हस्ते हस्ते रुला गया कोई

Thursday, May 21, 2009

"Daag" ki shayyiri

खूब पर्दा है की चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़
छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

"Daag" ki shayyiri

खूब पर्दा है की चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

Sunday, May 10, 2009

"Daag" ki shayyiri

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदके होती कभी दिल निसार होता
कोई फितना ता_क़यामात, न फिर अश्कार होता
तेरे दिल पे काश जालिम मुझे इख्तियार होता
जो तुम्हारी तरह तुमसे कोई झूठे दावे करता
तुम्ही मुनसिफी से कह दो तुम्हे ऐतबार होता
ये मज़ा था दिल लगी का के बराबर आग लगती
न तुझे करार होता न मुझे करार होता
न मज़ा है दुश्मनी में, न कोई लुत्फ़ दोस्ती में
कोई गैर गैर होता, कोई यार यार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
मगर अपनी जिंदगी का हमें ऐतबार होता
तुम्हे नाज़ हो न क्यूँकर के लिया है 'दाग' का दिल
ये रक़म न हाथ लगती न ये इफ्तिखार होता

Thursday, May 7, 2009

"Daag" ki shayyiri

तारीफे-जौर और फिर इस शद्दोमद[जोर-शोर] के साथ
मेरी जुबान ने मुझको झूठा बना दिया

"Daag" ki shayyiri

लोग मरने को भी कह्ते है विसाल
यें अगर सच है तो मर जाते हैं हम

"Daag" ki shayyiri

तारीफे-जौर और फिर इस शद्दोमद[जोर-शोर] के साथ
मेरी जुबान ने मुझको झूठा बना दिया

"Daag" ki shayyiri

जिक्रे-महरो-वफ़ा तो हम करते
पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

"Daag" ki shayyiri

बना ली शर्मआलूदा[शर्मिंदा] निगाहें
तगाफुल में यें हुशियारी तो देखो


Saturday, April 25, 2009

"Daag" ki shayyiri

याद है कहना वह किसी वक़त का
होश में आओ तुम्हें कया हो गया
डर मेरे सीने में जो रुकता है आज
कौन खुदा जाने ख़फा हो गया
हाल मेरा देख के कह्ते हैं वो
कोई हसीं इस से जुदा हो गया

"Daag" ki shayyiri

वो रुसवाई[बदनामी] से डर जाए तो अच्छा
बुराई काम कर जाये तो अच्छा
कहा ज़ालिम ने मेरा हाल सुन कर
वो इस जीने से मर जाए तो अच्छा
गज़ब है इंतजार-ए-वादा-ए-हश्र[प्रलय के वादे की प्रतीक्षा]
यही कह कर मुकर जाए तो अच्छा
वो तकलीफ-ए-अयादत क्यूँ करे 'दाग'
मेरी उनको खबर जाए तो अच्छा

"Daag" ki shayyiri

आशना[जानकार] तू है अपने मतलब का
फैसला हो चूका है यह कब का
दाग-ए-मय को ना देख ऐ जाहिद !
दिल तो है पाक रिंद-मशरब[शराबी]का
काफिर-ए-इश्क क्यूँ मुसलमां हो
सब को है पास अपने मजहब का
पहले इनकार और फिर दुशनाम[गाली]
यें नतीजा है अर्ज़-ए-मतलब[प्रार्थना] का
शुक्र है 'दाग' कामयाब हुआ
हक-तआला[ईश्वर] भला करे सब का

"Daag" ki shayyiri

शौंक है उस को खुद-नुमाई का
अब खुदा हाफिज़ इस खुदाई का
किसी बन्दे को दर्द-ए-इश्क ना दे
वास्ता अपनी किब्रियाई[महानता]का
बुतकदे की जो सैर हमने की
कारखाना है इक खुदाई का
सुल्ह के बाद वो मज़ा ना रहा
और सामान था लड़ाई का

"Daag" ki shayyiri

कुछ सई[कोशिश] से इकबाल[सौभाग्य] मयस्सर नहीं होता
हर आईना-गर दाग-ए-सिकन्दर नहीं होता
बेदाद[निष्ठुरता] तेरी देख के यें हाल हुआ है
आशिक कोई दुनिया में किसी पर नहीं होता
हम जानते हैं आते हैं मातम को फ़रिश्ते
जिस बज्म में शग़ल-ए-मय-ओ-सागर[शराब पीना] नहीं होता

daag ki shayyiri

बुतों ! दीन-ओ-दुनिया में काफी है मुझको
खुदा का भरोसा, सहारा तुम्हारा
रूकावट ना होती तो दिल एक होता
तुम्हारा हमारा, हमारा तुम्हारा
सुना है किसी और को चाहता है
वो दुश्मन हमारा, वो प्यारा तुम्हारा

wel come