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Sunday, May 31, 2009

bani ki shayyiri

वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला
उलझ के रह गया, दूरी को खोलने वाला
लो सारे शहर के पत्थर समेट लाये हम
कहाँ है हम को शब्-ए-रोज़ तोलने वाला
हमारा दिल तो समंदर था उसने देख लिया
बहुत उदास हुआ ज़हर घोलने वाला
किसी की मौज-ए-रवां से खा गया क्या मात
वो एक नज़र में दिलों को तोलने वाला
वो आज फिर यही दोहरा के चल दियाबनी
मैं भूल के नहीं अब तुझसे बोलने वाला

wel come