वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला
उलझ के रह गया, दूरी को खोलने वाला
लो सारे शहर के पत्थर समेट लाये हम
कहाँ है हम को शब्-ए-रोज़ तोलने वाला
हमारा दिल तो समंदर था उसने देख लिया
बहुत उदास हुआ ज़हर घोलने वाला
किसी की मौज-ए-रवां से खा गया क्या मात
वो एक नज़र में दिलों को तोलने वाला
वो आज फिर यही दोहरा के चल दिया ‘बनी’
मैं भूल के नहीं अब तुझसे बोलने वाला
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