मुझसे काफिर को तेरे इश्क ने यूँ शरमाया
दिल तुझे दे के धड़का तो खुदा याद आया
चारागर आज सितारों की क़सम खा के बता
किसने इंसान को तबस्सुम के लिए तरसाया
नजर करता रहा मैं फूल के जज्बात उससे
जिसने पत्थर के खिलोनों से मुझको बहलाया
उसके अन्दर कोई फनकार छुपा बैठा है
जानते-बुझते जिस शख्स ने धोखा खाया
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
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Friday, June 5, 2009
Thursday, April 30, 2009
ahmed nadeem qasmi ki shayyiri
अभी कहीं ना कहीं सिदक़ भी है, अदल भी है
मैं वर्ना खैर के इस्बात[proof] से मुकर जाता
मैं वर्ना खैर के इस्बात[proof] से मुकर जाता
Saturday, April 25, 2009
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