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Thursday, April 16, 2009

raahi masoom raza ki shayyiri


जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्‍बू के मकां कैसे हैं ।।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशां कैसे हैं ।।
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं ।।
मैं तो पत्‍थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकां कैसे हैं ।।
जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं ।।

wel come