दर्द-ए-दिल तो रुकने का अब नाम नही लेता है
सब्र-ए-दिल भी मेरा अब काम नही लेता है
जब से बख्शे है मेरी आँखों को आंसू तुने
तबसे दीवाना भी आराम नही लेता है
इतना संग दिल है की बरबाद वोह करके मुझे
अपने सर कोई इल्जाम नही लेता है
ये इनायात भी नही कम मेरे हरजाई की
ज़ख्म देता है मगर दम नही लेता है
जो की रुसवाई से डरता है बहुत वोह 'इशरत'
वोह मेरा नम सर-ए-आम नही लेता है