हम पशेमान नही तर्क-ए-मुब्बत करके
अपने हमराज़ से बेदम अदावत करके
जिसने रखा है हमेशा अपने से पराए
उसको चाहा है हद से बगावत करके
बे-जुबां ज़ख्म भला कैसे मरहम माँगे
हौसले टूटे अपने ही शिकायत करके
कितना जौम था महें उसकी पारसाई का
सब भ्रम टूट गए उससे रफाकात करके
हाथ तितली पे जो रखा तो फूल मसला गया
बोहत पछताये हम छोटी सी शरारत करके