क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था तो था तुझी से मुझे
बेहिसी का भी अब नही एहसास
क्या हुआ तेरी बेरुखी से मुझे
मौत की आरजू भी कर देखू
क्या उम्मीदे थी ज़िन्दगी से मुझे
फिर किसी पर न ऐतबार आए
यु उतारो न अपने जी से मुझे
तेरा गम भी न हो तो क्या जीना
कुछ तसली है दर्द ही से मुझे
कर गए किस कदर तबाह 'जिया'
दुश्मन, अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Showing posts with label जिया जालंधरी. Show all posts
Showing posts with label जिया जालंधरी. Show all posts
Friday, June 5, 2009
Thursday, June 4, 2009
zia jalandhari ki shayyiri
क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था तो था तुझी से मुझे
बेहिसी का भी अब नहीं एहसास
क्या हुआ तेरी बेरुखी से मुझे
मौत की आरजू भी कर देखूं
क्या उम्मीदें थी जिंदगी से मुझे
फिर किसी पर न ऐतबार आये
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे
तेरा ग़म भी न हो तो क्या जीना
कुछ तसली है दर्द ही से मुझे
कर गए किस कदर तबाह 'जिया'
दुश्मन, अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे
वास्ता था तो था तुझी से मुझे
बेहिसी का भी अब नहीं एहसास
क्या हुआ तेरी बेरुखी से मुझे
मौत की आरजू भी कर देखूं
क्या उम्मीदें थी जिंदगी से मुझे
फिर किसी पर न ऐतबार आये
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे
तेरा ग़म भी न हो तो क्या जीना
कुछ तसली है दर्द ही से मुझे
कर गए किस कदर तबाह 'जिया'
दुश्मन, अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे
Subscribe to:
Posts (Atom)