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Thursday, June 4, 2009

qaiser ul jafri ki shayyiri

तुम्हारे शहर का मौषम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें
तुम्हें भूलने में शायद मुझे ज़माना लगे
हमारे प्यार से जलाने लगी है ये दुनिया
दुआ करो किसी दुश्मन की बद_दुआ न लगे
नाजाने क्या है उसकी बेबाक आंखों में
वो मुँह छुपा के जाये भी तो बेवफा न लगे
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
के आस पास की लहरों को भी पता न लगे
हो जिस अदा से मेरे साथ बेवफाई कर
के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा न लगे
वो फूल जो मेरे दामन से हो गए मंसूब
खुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे
तुम आँख मूंद के पी जाओ जिंदगी 'कैसर'
के एक घूँट में शायद ये बद_मज़ा न लगे

Friday, May 29, 2009

qaiser ul jafri ki shayyiri

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तोह भूल जाओ हमें
तुम्हें भूलने में शायद मुझे ज़माना लगे
हमारे प्यार से जलने लगी है ये दुनिया
दुआ करो किसी दुश्मन की बद_दुआ लगे
जाने क्या है उस्सकी बेबाक आंखों में
वो मुँह छुपा के जाए भी तोह बेवफा लगे
जो डूबना है तोह इतने सुकून से डुबो
के आस-पास की लहरों को भी पता लगे
हो जिस अदा से मेरे साथ बेवाफ्फई कर
के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा लगे
वो फूल जो मेरे दामन से हो गए मंसूब
खुदा करे उन्हे बाज़ार की हवा लगे
तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िन्दगी 'कैसर'
के एक घूँट में शायद ये बद-मज़ा लगे

qaiser ul jafri ki shayyiri

हर शम्मा बुझी रफ्ता रफ्ता, हर ख्वाब लुटा धीरे धीरे
शीशा सही पत्थर भी था, दिल टूट गया धीरे धीरे
बरसों में मरासिम बनते हैं, लम्हों में भला क्या टूटेंगे
तू मुझसे बिछड़ना चाहे तोह, दीवार उठा धीरे धीरे
एहसास हुआ बर्बादी का जब सारे घर में धूल उडी
आई है हमारे आँगन में पतझड़ की हवा धीरे धीरे
दिल कैसे जला किस वक्त जला हमको भी पता आख़िर में चला
फैला है धुआं चुपके चुपके, सुलगी है चिता धीरे धीरे
वो हाथ पराये हो भी गए अब दूर का रिश्ता है 'कैसर'
आती है मेरी तन्हाई में खुशबु--हिना धीरे धीरे

wel come