तुम्हारे शहर का मौषम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें
तुम्हें भूलने में शायद मुझे ज़माना लगे
हमारे प्यार से जलाने लगी है ये दुनिया
दुआ करो किसी दुश्मन की बद_दुआ न लगे
नाजाने क्या है उसकी बेबाक आंखों में
वो मुँह छुपा के जाये भी तो बेवफा न लगे
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
के आस पास की लहरों को भी पता न लगे
हो जिस अदा से मेरे साथ बेवफाई कर
के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा न लगे
वो फूल जो मेरे दामन से हो गए मंसूब
खुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे
तुम आँख मूंद के पी जाओ जिंदगी 'कैसर'
के एक घूँट में शायद ये बद_मज़ा न लगे
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
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Thursday, June 4, 2009
Friday, May 29, 2009
qaiser ul jafri ki shayyiri
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तोह भूल जाओ हमें
तुम्हें भूलने में शायद मुझे ज़माना लगे
हमारे प्यार से जलने लगी है ये दुनिया
दुआ करो किसी दुश्मन की बद_दुआ न लगे
न जाने क्या है उस्सकी बेबाक आंखों में
वो मुँह छुपा के जाए भी तोह बेवफा न लगे
जो डूबना है तोह इतने सुकून से डुबो
के आस-पास की लहरों को भी पता न लगे
हो जिस अदा से मेरे साथ बेवाफ्फई कर
के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा न लगे
वो फूल जो मेरे दामन से हो गए मंसूब
खुदा करे उन्हे बाज़ार की हवा न लगे
तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िन्दगी 'कैसर'
के एक घूँट में शायद ये बद-मज़ा न लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तोह भूल जाओ हमें
तुम्हें भूलने में शायद मुझे ज़माना लगे
हमारे प्यार से जलने लगी है ये दुनिया
दुआ करो किसी दुश्मन की बद_दुआ न लगे
न जाने क्या है उस्सकी बेबाक आंखों में
वो मुँह छुपा के जाए भी तोह बेवफा न लगे
जो डूबना है तोह इतने सुकून से डुबो
के आस-पास की लहरों को भी पता न लगे
हो जिस अदा से मेरे साथ बेवाफ्फई कर
के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा न लगे
वो फूल जो मेरे दामन से हो गए मंसूब
खुदा करे उन्हे बाज़ार की हवा न लगे
तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िन्दगी 'कैसर'
के एक घूँट में शायद ये बद-मज़ा न लगे
qaiser ul jafri ki shayyiri
हर शम्मा बुझी रफ्ता रफ्ता, हर ख्वाब लुटा धीरे धीरे
शीशा न सही पत्थर भी न था, दिल टूट गया धीरे धीरे
बरसों में मरासिम बनते हैं, लम्हों में भला क्या टूटेंगे
तू मुझसे बिछड़ना चाहे तोह, दीवार उठा धीरे धीरे
एहसास हुआ बर्बादी का जब सारे घर में धूल उडी
आई है हमारे आँगन में पतझड़ की हवा धीरे धीरे
दिल कैसे जला किस वक्त जला हमको भी पता आख़िर में चला
फैला है धुआं चुपके चुपके, सुलगी है चिता धीरे धीरे
वो हाथ पराये हो भी गए अब दूर का रिश्ता है 'कैसर'
आती है मेरी तन्हाई में खुशबु-ऐ-हिना धीरे धीरे
शीशा न सही पत्थर भी न था, दिल टूट गया धीरे धीरे
बरसों में मरासिम बनते हैं, लम्हों में भला क्या टूटेंगे
तू मुझसे बिछड़ना चाहे तोह, दीवार उठा धीरे धीरे
एहसास हुआ बर्बादी का जब सारे घर में धूल उडी
आई है हमारे आँगन में पतझड़ की हवा धीरे धीरे
दिल कैसे जला किस वक्त जला हमको भी पता आख़िर में चला
फैला है धुआं चुपके चुपके, सुलगी है चिता धीरे धीरे
वो हाथ पराये हो भी गए अब दूर का रिश्ता है 'कैसर'
आती है मेरी तन्हाई में खुशबु-ऐ-हिना धीरे धीरे
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