आज भी हैं मेरे क़दमों के निशान आवारा
तेरी गलियों में भटकते थे जहाँ आवारा
तुझसे क्या बिछडे तोह ये हो गई अपनी हालत
जैसे हो जाए हवाओं में धुंआ आवारा
मेरे शेरों की थी पहचान उसी के दम से
उसको खो कर हुए बेनाम-ओ-निशान आवारा
जिसको भी चाह उससे टूट के चाह 'राशिद'
कम मिलेंगे तुम्हे हम जैसे यहाँ आवारा
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
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Friday, May 29, 2009
mumtaz rashid ki shayyiri
मुझसे मेरा क्या रिश्ता है, हर एक रिश्ता भूल गया
इतने आईने देखे हैं, अपना चेहरा भूल गया
अब तोह ये भी याद नही है फर्क था कितना दोनों में
उसकी बातें याद रही और उसका लहजा भूल गया
प्यासी धरती के होंठों पर मेरा नाम नही तोह क्या
मैं वो बदल का टुकडा हूँ जिसको दरिया भूल गया
दुनिया वाले कुछ भी कहे 'राशिद' अपनी मजबूरी है
उस्सकी गली जब याद आई है, घर का रास्ता भूल गया
इतने आईने देखे हैं, अपना चेहरा भूल गया
अब तोह ये भी याद नही है फर्क था कितना दोनों में
उसकी बातें याद रही और उसका लहजा भूल गया
प्यासी धरती के होंठों पर मेरा नाम नही तोह क्या
मैं वो बदल का टुकडा हूँ जिसको दरिया भूल गया
दुनिया वाले कुछ भी कहे 'राशिद' अपनी मजबूरी है
उस्सकी गली जब याद आई है, घर का रास्ता भूल गया
mumtaz rashid ki shayyiri
दर्द की बारिश सही मधम, ज़रा अहिस्ता चल
दिल की मिटटी है अभी तक नम, ज़रा अहिस्ता चल
तेरे मिलने और फिर तेरे बिछड़ जाने के बीच
फासला रुसवाई का है कम, ज़रा अहिस्ता चल
अपने दिल ही में नही है उस्सकी महरूमी की याद
उस्सकी आंखों में भी है शबनम, ज़रा अहिस्ता चल
कोई भी हो हमसफ़र 'राशिद' न हो खुश इस कदर
अब के लोगो में वाफ्फा है कम, ज़रा अहिस्ता चल
दिल की मिटटी है अभी तक नम, ज़रा अहिस्ता चल
तेरे मिलने और फिर तेरे बिछड़ जाने के बीच
फासला रुसवाई का है कम, ज़रा अहिस्ता चल
अपने दिल ही में नही है उस्सकी महरूमी की याद
उस्सकी आंखों में भी है शबनम, ज़रा अहिस्ता चल
कोई भी हो हमसफ़र 'राशिद' न हो खुश इस कदर
अब के लोगो में वाफ्फा है कम, ज़रा अहिस्ता चल
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