आज की रात भी गुज़री है मेरी, कल की तरहh
हाथ आए न सितारे तेरे, आँचल की तरह
रात जलती हुई इक ऐसी चिता है जिस पर
तेरी यादें हैं सुलगते हुए, संदल की तरह
तू इक दरिया है मगर मेरी तरह पयसा है
मैं तेरे पास चला आऊँगा, बादल की तरह
मैं हूँ इक खवाब मगर जागती आंखों का 'आमिर'
आज भी लोग गँवा दें न मुझे, कल की तरह
हाथ आए न सितारे तेरे, आँचल की तरह
आज की रात भी गुज़री है मेरी, कल की तरह.........
.......
nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
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Sunday, June 7, 2009
Saturday, June 6, 2009
ameer ki shayyiri
इश्क में जान से गुज़रते हैं गुजरने वाले
मौत की राह नहीं देखते मरने वाले
आखरी वक़त भी पूरा ना किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गये मरने वाले
उठे और कूचा-ए-महबूब में पोहंचे आशिक
ये मुसाफिर नहीं रास्ते में ठहरने वाले
जान देने का कहा मैंने तो हँस कर बोले
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मारने वाले
आसमां पे जो सितारे नज़र आये ए 'आमीर'
याद आये मुझे वो दाग़ उभरने वाले
मौत की राह नहीं देखते मरने वाले
आखरी वक़त भी पूरा ना किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गये मरने वाले
उठे और कूचा-ए-महबूब में पोहंचे आशिक
ये मुसाफिर नहीं रास्ते में ठहरने वाले
जान देने का कहा मैंने तो हँस कर बोले
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मारने वाले
आसमां पे जो सितारे नज़र आये ए 'आमीर'
याद आये मुझे वो दाग़ उभरने वाले
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